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याचिका सारांश

ब्राह्मण (अत्याचार निवारण) अधिनियम बनायें
ब्राह्मणों को निशाना बनाकर घृणा फैलाने वाले भाषण बंद करें – ब्रह्मोफोबिया

भारत के महामहिम राष्ट्रपति, भारत के माननीय प्रधान मंत्री, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश को याचिका
हम आपसे विनम्रतापूर्वक “ब्राह्मण (अत्याचार निवारण अधिनियम)” बनाने का अनुरोध करते हैं।

हमारे अनुरोध के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  • सोची-समझी साजिश के तहत ब्राह्मण घृणा प्रचार औपनिवेशिक काल के दौरान शुरू किया गया था।
  • यह भारतीय सभ्यता विनाश व्यूह नीति का हिस्सा था जिसका उद्देश्य स्वदेशी संस्कृति, परंपराओं और ज्ञान प्रणालियों को नष्ट करना था।
  • इस साजिश की राह में सबसे बड़ा अवरोध ब्राह्मण हैं तदर्थ सबसे पहले उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। चूँकि सभ्यतागत ज्ञान का प्रसारण सभी समुदायों से जुड़ा है, इसलिए ब्राह्मणों के प्रति घृणा उत्पन्न करने के बाद, अन्य सभी समुदायों को एक-एक करके तब तक निशाना बनाया जाएगा जब तक कि सभ्यता विलुप्त न हो जाए।
  • ब्राह्मण घृणा प्रचार का अपरिहार्य परिणाम ब्राह्मण नरसंहार, हिंदू विलुप्ति और अंततः भारतीय सभ्यता का विनाश है।
  • ब्राह्मण घृणा भाषण (जिसे ब्रह्मोफोबिया कहा जाता है) को या तो कुछ मुख्य धारा मीडिया में सामान्यीकृत किया जाता है या उन पर आपत्ति नहीं जताई जाती है, जिससे इसे ‘स्वच्छंद मंच’ मिल जाता है।
  • सामाजिक मीडिया ब्राह्मण घृणा प्रचार से भरा पड़ा है। शोध अध्ययनों से पता चला है कि ऑनलाइन घृणा के वास्तविक परिणाम असली दुनिया में सामने आने लगते हैं और इससे हिंसा हो सकती है म्यांमार के परिप्रेक्ष्य में, सामाजिक मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल ऑफ-लाइन हिंसा भड़काने के लिए किया गया था)
  • विश्व स्तर पर संगठित रूप से व्यक्तिगत नेता (या संभवतः राज्य पोषित नेता) सामाजिक मीडिया में ब्रह्मोफोबिया विषयवस्तु बनाने और प्रसारित करने में समय और संसाधनों का निवेश कर रहे हैं
  • सरकार ने स्वयं (या तो जाने-अनजाने) विद्यालय की पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से नस्लवादी आर्य आक्रमण सिद्धांत का प्रचार किया है, जिससे ‘हम बनाम वे’ की पटकथा तैयार कर दी गई है और के घृणा बीज जो अतीत में कई दशकों से युवा दिमाग में बोए गए थे, अब विशाल वटवृक्ष बन चुके हैं
  • स्वतंत्र भारत महात्मा गांधीजी की हत्या के बाद ब्राह्मण नरसंहार का साक्ष्य बन चुका है
  • पंडित परिवार में जन्म लेने के एकमात्र वजह से कश्मीरी पंडित समुदाय का जातीय सफाया कर दिया गया और उन्हें अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया। इस नरसंहार के अपराधियों को सज़ा तक नहीं दी गई। निहित स्वार्थों द्वारा ‘पलायन’, ‘विस्थापन’ जैसे शब्दों का उपयोग कर इस नरसंहार की परिभाषा बदलने का एक वैश्विक अभियान चलाया गया।
  • “ब्राह्मण नरसंहार: हिंदू विलुप्ति का पूर्वगामी” शीर्षक वाली हालिया पुस्तक ब्राह्मणों के खिलाफ प्रणालीगत द्वेषपूर्ण भाषण की औपनिवेशिक उत्पत्ति, पिछले 2000 वर्षों के दौरान ब्राह्मण नरसंहार के विभिन्न उदाहरणों का दस्तावेजीकरण करती है। यह मुख्यधारा की मीडिया, सामाजिक मीडिया, कुछ गैर सरकारी संगठनों, सार्वजनिक हस्तियों और अन्य में ब्रह्मोफोबिया (ब्राह्मणों को निशाना बनाने वाले घृणास्पद भाषण) के वर्तमान साक्ष्य भी साझा करती है। पुस्तक इस सवाल पर भी चर्चा करती है कि ‘ब्राह्मणों के खिलाफ अत्याचारों की रोकथाम के लिए एक अलग कानून की आवश्यकता क्यों है’ जो भारत के कई राज्यों में अल्पसंख्यक आबादी के रूप में बसे हैं और ब्रह्मोफोबिया का शिकार हो रहे हैं। हमने इस पुस्तक की एक प्रति आपके अवलोकन हेतु आपके कार्यालय में भेज दी है।
  • न्यूजीलैंड के कानूनी विशेषज्ञ जेरेमी वाल्ड्रॉन ने अपनी पुस्तक “द हार्म इन हेट स्पीच” में तर्क दिया है कि घृणास्पद भाषण समावेशिता और गरिमा को नुकसान पहुंचाता है, ये दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं जिन पर आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य का निर्माण होता है। हम प्रोफेसर वाल्ड्रॉन को नीचे उद्धृत कर रहे हैं:“किसी व्यक्ति की गरिमा केवल कांतिवादी (जर्मन दार्शनिक ईमानुअल कांत का दर्शन) आभा नहीं है। यह उनकी सामाजिक और व्यक्ति प्रतिष्ठा के मूल तत्व हैं जो उन्हें समाज के सामान्य संचालन में समान व्यवहार का अधिकार देते हैं। उनकी गरिमा ऐसी चीज़ है जिस पर वे भरोसा कर सबसे अच्छी स्थिति में बिना किसी उपद्रव के अपना जीवन जीते हैं, अपना व्यवसाय करते हैं और अपने परिवारों का पालन-पोषण करते हैं। घृणास्पद भाषण का प्रकाशन इसे कमज़ोर करने के लिए किया गया है। इसका उद्देश्य उन लोगों की गरिमा को कमतर कर उनको उनकी अपनी नजर में और समाज के अन्य सदस्यों की नजर में गिराना है।”
  • हमारे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 इसकी व्याख्या करता है:‘कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।’
  • माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने राम शरण औत्यानुप्रासी बनाम भारत संघ (MANU/SC/0406/1988: AIR 1989 सुप्रीम कोर्ट 549) मामले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार में वे सभी शामिल होंगे जो इसे अर्थ देते हैं। मनुष्य का जीवन अर्थात् उसकी परंपरा, संस्कृति, विरासत और उस विरासत की पूर्ण सुरक्षा से है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा में घोषित मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) का अनुच्छेद 12 नीचे उद्धृत किया गया है:किसी की भी निजता, परिवार, घर या पत्राचार में मनमाने ढंग से हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, न ही उसके सम्मान और प्रतिष्ठा पर आघात किया जाएगा। इस तरह के हस्तक्षेप या हमले के खिलाफ हर किसी को कानून की सुरक्षा का अधिकार है।
  • ब्राह्मण समुदाय के खिलाफ लक्षित घृणा भाषण अनुच्छेद 14 और 15(1) का उल्लंघन है जो गारंटी देता है कि राज्य किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा और न ही किसी अयोग्यता, दायित्व अथवा प्रतिबंध के अधीन ऐसा करने देगा। इसलिए, हम आपसे विनम्रतापूर्वक ‘ब्राह्मण (अत्याचार निवारण) अधिनियम’ बनाने का अनुरोध करते हैं।

महामहिम राष्ट्रपति के सचिवालय, माननीय प्रधानमंत्री के कार्यालय, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय और संबंधित सरकारी मंत्रालय कार्यालयों को एक विस्तृत औपचारिक प्रतिनिधित्व भेजने का प्रस्ताव है। विस्तृत औपचारिक प्रतिनिधित्व का मसौदा नीचे पीडीएफ में दिया गया है

Download Pdfऔपचारिक प्रतिनिधित्व देखने के लिए यहां क्लिक करें

यदि आप औपचारिक प्रतिनिधित्व मसौदे में अतिरिक्त सामग्री या सुझाव साझा करना चाहते हैं, तो कृपया फीडबैक@saptharishi.org पर ईमेल करें

Sign this Petition

Stop Hate Speech Targeting Brahmins (Brahmophobia)

Dear Sir/Madam,

Petition Summary

Enact Brahmins (Prevention of atrocities) act

Stop Hate Speech targeting Brahmins - Brahmophobia

Petition to Honourable President of India, Honourable Prime Minister of India, Honourable Chief Justice of the Supreme Court of India

We hereby humbly request you to enact "Brahmin (Prevention of atrocities Act).

Some Key reasons for our request are given below:

    -Systemic Brahmin hate propaganda was started during colonial era.


   - It was part of a Bharatiya civilisational destruction project aimed towards destruction of indigenous culture, traditions, and knowledge systems. 


   - Brahmins just happen to be in the way and are being targeted first.  Since civilisational knowledge transmission belongs to all communities, after Brahmin hate has succeeded, all other communities will be targeted one by one until the civilisation is made extinct.


    - The inevitable consequence of Brahmin hate propaganda is Brahmin genocide, Hindu extinction, and eventual destruction of the Bharatiya civilisation.   


   - Brahmin hate speech (termed as Brahmophobia) is either normalised in some main stream media or is not challenged thereby giving it a ‘free pass.’  


    -  Social media is replete with Brahmin hate propaganda. Research studies have shown that Online hate has real world consequences and can lead to violence (& in the case of Myanmar, social media platform was used to incite off-line violence)


   - Some Globally organised nonstate actors (or possibly state funded actors) are investing time and resources in creating and circulating Brahmophobia material in social media,


    - The Government itself (either wittingly or unwittingly) has propagated racist Aryan Invasion theory through school text books, creating a ‘us versus them’ narrative and the seeds of hatred which have been planted in young minds for many decades in the past has now grown to a giant tree.


    - Independent India witnessed Brahmin Genocide in the aftermath of Mahatma Gandhiji’s assassination.


   - Kashmiri Pandit community was ethnic cleansed and made refugees in their own country, for the only fault of being born as Pandits.  The perpetrators of this Genocide were not punished . A global campaign was carried out by vested interests to white wash this genocide by using terms like' migration', 'displacement'.


   - The recent book titled “Brahmin Genocide: A Precursor to Hindu Extinction” documents the colonial origins of systemic hate speech against Brahmins, various instances of Brahmin massacres during last 2000 years. It also shares current evidence of Brahmophobia (Hate speech targeting Brahmins) in mainstream media, social media, some NGOs, public figures and more.   The book also discusses the question of ‘why a separate law is required for prevention of atrocities against Brahmins’ who constitute a minority population in many states of India and are being subjected to Brahmophobia. We have sent a copy of this book to your office for kind perusal.   


    - New Zealand legal luminary Jeremy Waldron in the book “The harm in hate speech” argues that hate speech damages inclusiveness and dignity, two crucial pillars on which modern democratic state is built. We quote Prof. Waldron below: (bold face added for emphasis)
      “A person’s dignity is not just some Kantian aura. It is their social standing, the fundamentals of basic reputation that entitle them to be treated as equals in the ordinary operations of society. Their dignity is something they can rely on—in the best case implicitly and without fuss, as they live their lives, go about their business, and raise their families. The publication of hate speech is calculated to undermine this. Its aim is to compromise the dignity of those at whom it is targeted, both in their own eyes and in the eyes of other members of society.”



  - Article 21 of our Indian constitution states as follows:
    'No person shall be deprived of his life or personal liberty except according to procedure established by law".


   - The Honourable Supreme Court held in Ram Sharan Autyanuprasi v. Union of India (MANU/SC/0406/1988 : AIR 1989 Supreme Court 549) that the right to life enshrined in Article 21 of the Constitution would include all that gives meaning to a man’s life namely, his tradition, culture, heritage and protection of that heritage in its full measure


  -  Article 12 of The   Universal Declaration of Human rights (UDHR) proclaimed in the UN General Assembly is quoted below: 

    No one shall be subjected to arbitrary interference with his privacy, family, home, or correspondence, nor to attacks upon his honour and reputation. Everyone has the right to the protection of the law against such interference or attack. 

    - Hate speech targeted against Brahmin community is in violation of Article 14 and 15(1) which guarantees that the state shall not discriminate against any citizen on grounds only of religion, caste, sex, place of birth, or any of them and would not be subject to any disability, liability, restriction.

    Hence, we humbly request you for enacting the ‘Brahmins (Prevention of Atrocities) Act’.

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